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देश आजाद है ।।
१
देश आजाद है,
हम आज़द है ।
अपनी भावनाओं की
अभिव्यक्ति कर
देश दुनिया को
दिखा सकते हैं ।
अपनी सम्प्रभुत्ता
जता सकते हैं ।।
२
पर एक बात कौंधती है-
बार – बार
जब भी देश में
कोई बड़ा हादसा होता है।
या कोई असहाय,
शोषण से रोता है,
तो उसकी आवाज़ दबाने का-
पुरजोर प्रयास होता है ।।
३
आत्मा कराहती है
मानों कह रही हो-
सिर्फ देश आज़ाद है।
हम गुलाम से हैं-
कुछ अपनी मानसिकता से
कुछ अपनी आलसता से
जीते जी मुर्दों सी रहने की-
आदत की विवसता से ।।
४
या हम गुलाम हैं,
कुछ अपने ही लोंगो से।
जनतंत्र के कुछ
दिखावटी ढ़ोंगो से ।
जनता क्षुधित-शोषित है,
अपनी ही बेहोशी से ।
जन-जन परेशान है,
जन-जन की खामोशी से ।।
५
हम आज़ाद हैं
गॉंधी के बंदरों सा-
हर सितम सहने और
कुछ न बोलने के लिए ।
या भरे चौराहे पर ‘चिर-हरण’ हो
किसी द्रौपदी का पर
ऑंखों और कानों को
मुंद कर रखने के लिए ।।
६
नहीं नहीं हरगीज नहीं,
जन-जन की आवाज़ को
कोई दबा नहीं सका है
जब-जब भी जुल्मों सितम,
हर शहर हर गॉंव में
हुआ है ।
एक चिंगारी सुलगी है,
आग लगी है…।।
७
देर या सबेर
तस्विर बदली है ।
लोग जगे हैं –
अपना हक लिए है।
क्योंकि-
जुल्म जीत नहीं सकता,
सच्चाई हार नहीं सकती,
इतिहास गवाह है ।।
८
अत: निराश नहीं होना है
अब और नहीं खोना है ।
अपनी आशा को जिलाए
रखना है सत्य के साथ,
एक नई सुबह के लिए,
एक नये कल के लिए ।
क्योकि हम आज़ाद हैं,
देश आज़ाद है ।।
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