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ये कलम

meri awaaz - meri kavita
meri awaaz - meri kavita
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ये कलम मुझे चैन से जिने नहीं देती है
ये कलम मुझे चैन से सोने नहीं देती है
डुबा रहता है जब जहां गहरी निंद में
ये कलम मुझे तब भी जगाती है
कुछ मेरी ही उलझनों को
कोरे कागजों पे उकेरती है
शायद कह रही हो
सिर्फ लिखने से क्याउ बदलाव आएगा
क्याफ अब तू चैन से सो पाएगा
जनता की कौन सरकार ???
यह लोकतंत्र
तरी कलम से जाग पाएगी
देखता नहीं क्याज हाल है वतन का
तू जगाने की फिक्र में है
और कुछ लोग लगातार सुलाने की
तैयारियां जोरो से कर रहें हैं
तू अकेला है इस पथ पर
पर सावधान
विश्राम
मत लेना
गहरी निंद में फिर
मत सोना
ये कलम ही है
जो हर देश मे क्रांति लाती है
जन जन को जगाती है ।।

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