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अजीब गरीब देश

meri awaaz - meri kavita
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अजीब गरीब देश
1
ज्‍यों रोचक कहानियों में
सूना जाता है किस्‍सा ।
कोई देश था अजीब ,
वो भी गरीब ।
लोग थे विभिन्‍न
धर्म और जाति के ।
विभिन्‍न प्रांत और
विभिन्‍न भाषा-भाषि के ।।
2
फिर भी अनेकता मे एकता,
और इस  एकता में बल है ।
और यही एकता बल,
संसद चलाती है ।।
अपने अपने स्‍वार्थ मे ,
राजनीति करती है ।
जाति – धर्म के नाम पर
जन-जन को भरमाती है ।।
3
लाल, हरे, निले, पिले को,
जनता जीत दिलाती है ,
सुशासन मिले अबकी बार शायद,
इनसे आस लगाती है ।।
लाल, हरा, निले, पीले मिल,
घोर अंधेर मचाती है ।
काला राज कायम रहता,
जनता ठगी रह जाती है ।।
4
दल-दल के गठजोड़ से
देश की शासन चलती है ।
एक निकले तो कर्इ ढुकते ,
इस तरह समर्थन पाती है ।
सौदे बाजी से तनिक भी,
नहीं शर्माती है ।
शर्ते रहती है लागू ,
सरकार चलती जाती है ।
5
पॉंच साल तक बेफिक्र,
जीत की डंका बजाती है ।
शासन की बांट बखरा कर,
मिल बांट कर खाती है ।।
अरबो-खरबो घोटकर ,
फंड का रोना रोती है ।
जनता तो सब जानती,
फिर भी सोती है ।।
6
क्‍योकि हर राज में-
जनता मजबुर है ,
किंकर्तव्‍य विमुढ़ है ।
वोट देना और किसी
एक को चुनना आज
उसकी लाचारी है ।
जनतंत्र की यह एक,
घातक बिमारी है ।।
7
इसका इलाज नहीं ,
समस्‍या बड़ी विकट है ।
अधिकतर दागियों के पास,
चुनावी टिकट है ।
किसे माने किसे चुने,
सभी बना गिरगिट है ।
कराह भी नही सकती जनता,
यह कैसी धर्म संकट है ।।
8
हर जुर्म के लिए यहॉं,
सजा और माफी है ।
बेकसुरों को फासती और
सात खुन की माफी है ।
यह गल्‍प नहीं हकीकत है,
जो अभी शेष है ।
यह अजीब देश ,
अपना भारत देश है ।।
9
यहॉं के चंद लोग,
देश ही नहीं दुनिया के,
अमिरों में गिने जाते हैं ।
खाते है देश की रोटी,
और गीत विदेशों के गाते है ।
शोषण कर जन-जन का,
धन – कुबेर कहे जाते है ।।
10
राजसी ठाट-बाट से,
जीवन गुजारते हैं ।
गर्मियों मे भी कोट –
पैंट चढाते हैं ।
ठण्‍डी होने के लिए ,
वातानुकूलित लगाते है ।
कुत्‍तों के हिफाजत में ,
इंसान को लगाते हैं ।।
11
वही शेष देश की गणना,
गरीबी – रेखा से नीचे ,
और पिछड़ेपन मे ऊपर-
विश्‍व में होती है ।
दो वक्‍त की भोजन बिन,
फुटपाथों पर सोती है ।
कुपोषण – शोषण से,
बिन मौत मरती है ।।
12
धूप, वर्षा, सर्दी, पाला,
सबकुछ सहती है,
बेजुबानों सा विवस ,
लाचार रहती है ।
दो वक्‍त की रोटी
जुगाड़ने मे तमाम उम्र,
अपने ही देश और लोंगो से,
संघर्ष करती है ।।
13
कैसी यह आजादी ,
कैसा समानाधिकार है ।
देश की सम्‍पदा पर,
चंद पुंजीपतियों का ,
एकाधिकार है ।
विदेशी वस्‍तुओं की,
देश मे भरमार है ।
देशी चीजें बेकार है ।।
14
धनी धनीराम होते,
और गरीब भिखारी ।
जो बोते है वो भूखे है,
यह कैसी लाचारी ।
मेहनतकस कामगारों का
पैसा ले उड़े भ्रष्‍टाचारी ।
मिली भगत की राज में
जनता है मारी – मारी ।।
15
यह राजतंत्र या जनतंत्र
जनता समझ न पाई है ।
युगों – युगों से वंशपरम्‍परा में
राजा या नेता पाई है ।
खुनों की होली वही खेलते,
जो कहते भाई – भाई है ।
जीना जब हर हाल में है ,
सोच स्‍वंय मुस्‍काई है ।।
16
सातवें दशक में भी ,
देश- जनता बेहाल है ।
नेता , अमले, चम्‍मचे,
खुब मालामाल हैं ।
सुन ये रोचक किस्‍सा,
उड़ जाते हैं होश ।
ये है अजीब – गरीब देश,
हमारा अपना भारत देश ।।
———————
उदयराज़

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