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देश शर्मसार है (हिंदी दिवश पर देश …)

meri awaaz - meri kavita
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देश शर्मसार है

देश की महिमा अपार है ।

सबको समान अधिकार है ।

जनता की सरकार है  ।

नेताओं की खुब बहार है ।।

***

सजी दिल्‍ली दरबार है ।

रौनक शहर चार है ।

पुंजीवाद का प्रसार है ।

प्रगति का प्रचार है ।।

***

जाति-धर्म जनमत का आधार है ।

धुर्तों के कंधे पर देश का भार है ।

खुला उनके किस्‍मत का द्वार है –

जो नारे दिए- ‘देश का करना उद्धार है ।।

***

अधुरा स्‍वप्‍न अब साकार है ।

‘लूट सको तो लूटो’ यही सार है ।

उसका जीवन बेकार है ।

जिसके पास न चमचमाती कार है ।

***

झोपडि़यों में अंधकार है ।

जनता को देखने का क्‍या दरकार है ।

हर ओर से पड़ रही मार है ।

निरीह किसान इसका शिकार है ।

***

मज़दूरों को न मिलती उचित पगार है ।

दबा दी जाती जो भी चित्‍कार है ।

एक तो हुई राजनीति व्‍यापार है ।

दूजी पूंजीवाद की दोधारी तलवार है ।।

***

चोर-उच्‍चकों की भरमार है ।

हर ओर भष्‍टाचार है ।

झूठ-फरेब़ का बाजार है ।

‘सत्‍य-अहिंसा’ बेबस – लाचार है ।।

***

हिंदी में बोले तो कहते गवार है ।

अंग्रेजी के गुलामों का ऐसा व्‍यवहार है ।

देश से इनको बनावटी प्‍यार है ।

इसलिए आज देश शर्मसार है ।।

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