meri awaaz - meri kavita
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**** दंगा ****
शहर के एक हिस्से में,
कुछ लोंगो ने भड़काया दंगा ।
कल तक जो थे भाई समान,
वही बहाने लगे खुन की गंगा ।।
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हो रहा नरसंहार हर ओर,
मानवता न रही तनिक शेष ।
धर्म के नाम पर इन ,
दंगाइयों में भरा क्लेश ।।
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जले, मिटे कितने ही इस,
सम्प्रदायिकता की आग में ।
बुझ गए कितने ही कुलदीप,
न रहा सिंदुर कितनों की मांग में ।।
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फैली सम्प्रदायिकता के लिए,
देते सब इक दुजे को दोष ।
बदले की आग से,
हर दिल में भरा रोष ।।
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आजाद–अश्फाक की जोड़ी टुटी,
नफरत की चिंगारी बिखरी ।
इस सभ्य समाज में,
कैसी यह अमानुषिकता उभरी ।।
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