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हिंदी
क्रमविकास संस्कृत-पालि-प्राकृत से
अपभ्रंश मिलि भई सुजान ।
आधुनिक आर्य भाषाओं की,
आधार पीठिका मन और प्राण ।।
वर्ण रत्नाकर संदेश रासक, कीर्तिलता में,
मिला हिंदी का अंश विद्यमान ।
रासो के प्रबंध काव्य में,
अक्षुण्ण रही विद्यमान ।।
नाथ-सिध्दों की रचनाओं में ,
बनाने लगी अलग पहचान ।
सरहपाद को मिला उचित,
प्रथम कवि सम्मान ।।
संक्रांति, ब्रज-अवधी काल में,
सूर-सूर्य, तुलसी-शशी प्रकाशवान ।
कबीर, खुसरों, गंग में दिखा,
खड़ी बोली का उत्थान ।।
घनानंद, बिहारी ने छेड़ी,
ब्रज की माधुर्य तान ।
आलम, बोधा के श्रृंगार में झलकी,
खड़ी बोली की आन – बान ।।
सदासुख, अल्ला, लल्लू सदल
गद्य के आधार स्तम्भ नवीन ।
श्रेय उनको, गद्य-पद्य एकाकार किया,
भारतेंदु-द्विवेदी समकालीन ।।
दयानंद, श्रध्दाराम, राजाराम,
सबने सेवा की, कर ग्रंथों का प्रणयन ।
बल दे पाए प्रचार–प्रसार को भी,
इसके सुधारवादी आंदोलन ।।
सितारे हिंद ने बनाया व्यावहारिक,
बोलचाल की भाषा में कर सृजन ।
लक्ष्मण ने स्वतंत्र गति दी,
कर प्रजाहितैषी का प्रकाशन ।।
भारतेंदु, प्रतापनारायण, बालकृष्ण का,
साहित्य में अतुलनीय योगदान ।
द्विवेदी, हरिऔध, गुप्त ने किया,
हिंदी को परिमार्जित, समृद्धवान ।।
राष्ट्रीयता के परमपोषक
माखन, दिनकर और चौहान ।
प्रसाद, पंत, निराला, महादेवी से,
छायावाद हुआ रूपवान ।।
मान बढाया प्रेमचंद ने
भरी उपन्यास विधा में नई जान ।
कोटि-कोटि हिंदीविदों ने,
किया इसे धनवान ।।
प्रगति-प्रयोग-जनवाद ने
साहित्य को नवीनता प्रदान ।
नार्गाजुन, धूमिल, मुक्तिबोध, अज्ञेय,
सर्वेश्वर, केदार रहेंगे सदा दैदीप्यमान ।।
इतिहास बनाकर साहित्य का
गियर्सन, शुक्ल ने किया एहसान ।
मिश्रबंधु, नागरिप्रचारिणी का भी,
कम नहीं रहा अवदान ।।
स्वतंत्र राष्ट्र में परभाषा से
सर्वत्र व्याप्त होता दासतापन ।
निजभाषा उन्नति अहै
यही सर्वमान्य सत्यकथन ।।
मिला राज्यभाषा का दर्जा
हुआ उचित सम्मान ।
बीत चुकी है अर्द्धशती,
पर मिलना शेष है उचित स्थान ।।
अपने ही देश में पराश्रित हो,
झेल रही है घोर अपमान ।
राष्ट्रीय विकास का ‘उदय’
हिंदी ही है निदान ।।
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उदयराज़
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