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देश की पूकार (कविता – कॉन्टेस्ट)

meri awaaz - meri kavita
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देश की पूकार

भारत माताँ मुक्‍त हुइ तोड़ गुलामी की जंजीर ।

पुण्‍यवेदी पर कितने ही चढ़ाए अपने सीर ।

मिटाने में कितने मिट गए हमारी ज‍मीर ।

अपने हाथों से बनाए हैं अपना तकदीर ।।

—–

ज्ञान-ज्‍याति से हर ले अंधकार ।

पाट विषमताओं को भरे प्‍यार ।

बने भगत, विस्मिल्ल, चंद्रशेखर

देश-द्रोहिओं का करें संहार ।।

—–

शोषणों को खत्‍म करे, रोके अत्‍याचार ।

हक के जंग में जीते जी माने न हार ।

समाज से मिटाए पशुवत व्‍यवहार,

सबको दिलाए समान अधिकार ।।

——–

सत्‍य-अहिंसा का हो प्रचार – प्रसार ।

देश से मिटाए काले धंधों का बाजार ।

शहीदों के सपने को करें साकार ।

स्‍नेह की हर जगह पड़े फुहार ।।

——–

यतीन, लाह‍ड़ी, खुदी, चापेकर ।

जैसे दिल में स्‍वदेश – प्रेम ले भर ।

देश पर कर तन-मन-धन निछावर ।

मर कर भी हो जाए अमर ।।

—–

खुशियों से भर जाए संसार ।

न जीना हो किसी का दुसवार ।

संकल्‍प ले मर मिटें हो देश की पूकार ।

वीर शहिदों को नव भारत का नमस्‍कार ।।

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