आज हम २१वीं शदी में जी रहे हैं । तमाश तकनीकों का सहारा लेकर दुनिया के प्रत्येक वस्तु को हम अपने बस में करने की क्षमता रखते हैं । हम आज चांद पर जा चुके हैं, मंगल पर यान भेजा जा चुका है , मानव को भेजे जाने की तैयारी हो रही है । हम प्रकृति को अपने अनुरूप करने का दम रखते हैं । इस सम्पूर्ण विश्व आज मानों एक गांव बन गया है । एक स्थान से दुसरे स्थान पर हम हवाई जहाज, रेलवे के द्वारा चंद घण्टों में सफर पूरा कर सकते हैं । एक स्थान पर हो रही घटनाओं को हम अपने घर बैठे देख सकते हैं । अपने दूर देश के मित्रों से बाते कर सकते हैं ।और तो और हम अपने कामों को अंजाम देने के लिए मशीनी मानव यानी रोबोट तक बना डाले हैं । अपनी इच्छा के अनुसार उन पर नियंत्रण कर सकते हैं । अत: अपने अपार ज्ञान एंव उन्नति के बल पर हम इस धरती के सर्वक्षेष्ठ हैं । पर एक छोटी सी बात हमारे अंतर्मन को हमेशा झकझोरती है कि क्या हम आज २१वीं शदी में तमाम उन्नति के शिखर पर विराजमान अपने आप पर नियंत्रण रख पाये हैं ? प्रश्न छोटा है पर इसका उत्तर किसी के पास नहीं है । अगर हम कहे की हां , तो बड़ा सरल सा बात है ये जो दिन – प्रतिदिन समाचारों , टीवी चैनलों के माध्यम से सुनने – देखने को मिलता है वो नहीं होता । हत्या , बलत्कार , मार , दंगा नहीं होता । आप भला तो जग भला होता । पर ऐसा नहीं है । वास्तविकता हमारे सामने है । आज मनुष्य तमाम कोशिशों के बावजुद अपने आप पर नियंत्रण करने में असफल रहा हैं । रहीम दास आज से करीब छ: सौ वर्ष पहले लिखते हैं – रहीमन पानी राखिए, बिन पानी सब सुन । पानी गए ना उबरे मोती, मानुष, चुन ।। पर शदियों बित जाने के बाद भी हम पानी को रखने में असमर्थ हैं । चाहे पानी का सीधा सा अर्थ जल को ही ले या मनुष्य के लिए उसकी इज्जत को । पानी हमारे अंदर का हो या धरती के अंदर का , पानी , पानी होता है । आज धरती का पानी घट रहा है मांग बढ रही है । धरती सुखा और बंजर हो रही है और हमारी पानी ??? हमारी पानी भी सुख रही है, हृदय शुष्क हो रहा है और मानवता पानी – पानी हो रही है । आखिर ऐसा क्या है जो रहीम दास ने लगभग सात सौ वर्ष पहले कही बात को हम आज इस २१वीं शदी में भी नहीं कर पा रहे हैं । पानी को समझ नहीं पा रहें हैं । इसके महत्व से अंजान बने हूए हैं । पानी सृष्टि है बिन पानी विनाश । चाहे पूरे सृष्टि का हो या मनुष्य का । बात छोटी है पर है बहुत बड़ी । पानी सहज है, सुलभ है , महत्व पता नहीं चलता । पर एक दिन भी अगर एक घण्टे लिए भी पानी न मिले तो जीवन चक्र रुक सा जाता है । बात केवल पीने तक की नहीं है घर के तमाम छोटे – मोटे कामों को जैसे लकवा मार जाता है । ऐसा लगता है पानी से अमूल्य कोई वस्तु हो ही नहीं सकती । इसी प्रकार मनुष्य के पानी न रहने पर उसकी सारी गुण, सुन्दरता, श्रेष्ठता समाप्त हो जाती है । आज हम सृष्टि के सर्वश्रेष्ठ हैं और हमारी श्रेष्ठता का मूल है हमारी पानी का होना । अर्थात हमारी मान-सम्मान का समाज में होना । एक बार मान सम्मान चले जाने से समाज में मनुष्य का कोई स्थान नहीं होता । मनुष्य के पानी के खोने का कारण है की वह पानी अर्थात् अपने आत्म-सम्मान के महत्व को आज भी नहीं समझ सका है । वह आज अपनी आत्म – सम्मान एंव लाज को ताक पर रख कर भौतिक – सुखों के सागर में डुबने को तैयार है । यहां तक कि मरने और मारने पर उतारु है । वजह एक है आज मनुष्य सिर्फ और सिर्फ अपने हितों के बारे में सोचने लगा है । विचारधाराएं आत्म-केन्द्रित और स्वंय तक सिमित हो गई हैं । हम स्वंय के हितों की चिंता करते हैं पर सबके हितों के लिए चिंतन का समय नहीं निकाल पाते हैं । क्योंकि यहां से अर्थ की प्राप्ति नहीं होती है । और आज दुनिया अर्थ के बिना अर्थहीन है । और इस अर्थ के चक्कर में ही समुचा मानव समाज चक्कर खा रहा है, अनर्थ कर रहा है । अपना मान-सम्मान खो रहा है । तरह – तरह के पाप कर्मों में लिप्ता है । अत: आज जरुरत है हमें पानी के महत्व को समझने की चाहे पानी के रुप में हमारा आत्म-सम्मान हो या जल । दोनों ही हमारे लिए हमारे हितों के लिए आवश्यक है । जिस प्रकार हीरे के चमक खो जाने से वह सामान्य कंकड़ो की तरह अनमोल से बेमोल हो जाता है और चुना पानी रहित होने पर नष्ट हो जाता है उसी प्रकार मनुष्य का मान-सम्मान के चल जाने के बाद उसका कोई मोल नहीं होता है । उसकी सारी श्रेष्ठता धरी की धरी रह जाती है । अत: धरती के लगभग 70 प्रतिशत पानी के रहते हुए भी पीने का पानी समुन्द्र मंथन से निकला अमृत के समान बहुत ही कम है और सब कुछ रहते हुए भी आत्म – सम्मान न रहे तो कुछ नहीं है । सब सुना है । अत: रहीमन पानी राखिए … ।
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