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सितम्बर का माह आते ही हिंदी के की गुंज सुनाई देती है । विभिन्न् कार्यालयों में, संस्था ओं में संगोष्ठि का आयोजन किया जाता है । कहीं निबंध लेखन, टिप्पंण, भाषण, कविता पाठ आदि का आयोजन किया जाता है । पूरस्कार भी दिए जाते हैं । हिंदी को बढावा देने के लिए, उससे जुड़ने के लिए अहिंदी भाषी लोगों को हिंदी से जुड़ने के लिए ऐसा किया जाता है । कुछ लोगों का मानना है की यह महज दिखावा है , छलावा है । इससे कुछ नहीं होगा । हिंदी में काम करना होगा । अपने को आंदोलन करना होगा । बात कुछ हद तक सही है । लेकिन मित्रों आप इसे भले ही जो समझे पर इससे कुछ लोग हर साल जुड़ते हैं जो हिंदी भाषी नहीं हैं और ऐसे समारोहों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं । पर उन मित्रों से मेरा यह भी अनुरोध है कि क्यास हिंदी भाषी जो ‘’ग क्षेत्रों’’ में कार्यरत हैं वे क्या अपने कार्यालयों में हिंदी में कार्य करते हैं, आवेदन पत्रों का व्यरवहार करते हैं , इमानदारी से अगर कोई जवाब दे तो हां का प्रतिशत बहुत ही कम होगा । हिंदी पखवाड़ा के लिए जिन प्रतियोगिताओं का आयोजन होता है उनमें भी स्वंय हिंदी भाषी की संख्या भी गिनी चुनी ही होती है । क्या हिंदी भाषी का यह दायित्व नहीं है की वह हिंदी को अपनाने के लिए, उसके प्रचार-प्रसार के लिए वास्तव में काम करे । अत: हमारा यह दायित्व होना चाहिए की हम स्वंय हिंदी में काम करे , इन प्रतियोगिताओं में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लें तथा औरों को भी प्रेरित करें । अपनी भाषा को बोलने में शर्म नहीं गर्व महशुस करें । क्योंकि शर्म तो हमें दूसरी भाषाओं की गुलामी करने में होनी चाहिए । बड़े ही शर्म की बात है हमारे देश को आजाद हुए लगभग ६७ वर्ष हो गए पर हम आज भी अंग्रेजी भाषा की गुलामी कर रहे हैं । अत: जिन देशप्रेमियों ने हिंदी को भारत की राष्ट्र भाषा कहा, देश को एकता के सुत्र में पिरोने वाली भाषा कहा उनकी भी यह मातृ भाषा नहीं थी ऐसा उन्होने देश हित में कहा क्योंकि वे अंग्रेजी की गुलामी नहीं करना चाहते थे । गांधी जी स्वंय गुजरात के थे , स्वामी विवेकानंद, राजा राम मोहन, बंगाल के ही नहीं पूरे देश के माने जाते हैं । प्रेमचंद पहले उर्दू में लिखते थे । बिहार की मातृ भाषा भोजपुरी मगही, मैथली आदि है , उत्तर प्रदेश की ब्रज, अवधि है । तो मित्रों हिंदी किसकी भाषा है जब यह उत्तर भारतीयों मातृ भाषा नहीं । अमीर खुसरो जो हिंदी बोली में रचना करते थे वे भी इस देश के नहीं थे । तो आखिर हिेंदी किसकी भाषा है ??? तो हम आज यह कहते हैं की हिंदी देश की भाषा है। यह पूरे हिंदुस्तान की भाषा है । यह किसी क्षेत्र या प्रदेश की भाषा नहीं है । यह वह भाषा है जिसने देश की आजादी में तमाम क्रांतिकारियों की सम्पर्क की भाषा है। जिसने देश को एक कर दिया । यह उन २९ राज्यों की बोलियों का मिश्रण है जिसमें सब कुछ समाहित हो सकता है । इसका विकास भी एक अहिंदी भाषी राज्य बंगाल के कोलकाता में हुआ । अत: मेरा यह मत नहीं है की आप अपनी उर्दू , बंग्ला मराठी, गुजराती आदि का त्याग कर सिर्फ हिंदी में काम करे । बल्कि मेरा मानना है कि हिंदी का प्रयोग देश हित के लिए किया जाए । देश की एकता के लिए किया जाए । यह वह भाषा है जो सभी को जोड़ने की तागत रखती है । अगर देश का काम काज अंग्रेजी में होता है तो गांवों में रहने वाले उसे समझ नहीं पाते हैं चाहे वे बिहार के हो या बंगाल के आदि । उदाहरण के लिए अगर जमिन की खरिद करनी है अथवा बेचनी है तो अंग्रेजी भाषा में प्रारूप तैयार किया जाता है एक कट्ठा के जगह पर अगर एक बिघा भी लिख कर किसानों को दे दी जाए वो वह नहीं समझ पाएगा और वह विदेशी भाषा के चुंगल में फस जाएगा । फिर कुछ समय पश्चात वह जमीन से हाथ धो बैठेगा । अगर यही कार्य की भाषा उसकी अपनी होती तो वह आसानी से समझ सकता था या अपने गांव ही के किसी कम पढे लोग से पढ़वा कर समझ सकता और ठगने से बच जाता । इसी तरह से कुछ समय पहले तक अहिंदी भाषी क्षेत्रों में बैंकों, डाक घरों आदि में अपना कार्य हिंदी में या अपनी क्षेत्रिय भाषाओं में कर सकते हैं लेकिन कुछ अंग्रेजी के गुलाम बाबुओं के कारण उन्हे किसी अंग्रेजी के ज्ञान रखने वाले व्यक्ति से उस कार्य को या फार्मों को कुछ पैसे देकर भरवाना पड़ता है । कुछ ऐसे ही लोग हैं जो अंग्रेजी को बढावा सिर्फ इसलिए देते हैं कि जनता को भाषा के जाल में फसा कर लुटा जा सके । राजनीति कर के वोट बटोरे जा सके । और सालों-साल कर्सी पर बैठ कर सत्ता का सुख लूट सके ।
एक बात और है हम हिंदी में काम क्योंर करे । हिंदी से हमारा क्या लाभ है । हम एक तरफ हिंदी की वकालत करते नजर आते हैं वहीं दूसरी ओर अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्येम से शिक्षा देते हैं । क्योंकि बिना अंग्रेजी के ज्ञान के हम नौकरी नहीं पा सकते । अत: जरूरत है सरकार के इस दोहरी मानसिकता को हमें बदलने की । आज का युग तकनीक का युग है । हम चीन, जापान, रशिया जैसे देशों के समान अपना कार्य अपनी भाषा में कर के विकास कर सकते हैं । हम दिखावे के लिए नहीं जानकारी के लिए अंग्रेजी भाषा का ज्ञान भी हासिल करें । लेकिन अपना काम हिंदी में ही करें । हिंदी की पत्रिकाएं पढ़े । अखबार पढ़े । जरूरत हो तो अंग्रेजी की भी पत्रिकाएं ले पर दिखावे के लिए ऐसा न करें । ऐसा करने से हम अपनी ही देश की भाषा का अवहेलना करते हैं । हम जिस अंग्रेजी की गुण गान करते थकते नहीं हैं क्या उस देश के वाशी हमें अंग्रेजी बोलने के कारण अपना सकते हैं ??? सोचने की विषय है । प्रत्येक भाषा का ज्ञान आवश्यक है पर अपनी भाषा का तिरस्कार करके नहीं । अपनी भाषा के साथ – साथ दूसरी भाषाओं का ज्ञान अर्जित करें अपनी भाषा छोड़कर नहीं ।
अत: हिंदी को बढावा दे । इसके साथ साथ प्रत्येक राज्य की अपनी भाषा है उसमें काम करे । उसके बाद अंग्रेजी को तीसरी भाषा के रूप में रखें । क्योंकी एकाएक इसे हटाया नहीं जा सकता है । जो लोग इसे अपनाना नहीं चाहते हैं उन पर दबाव नहीं डाला जा सकता है, उन्हें यह विश्वास दिलाना होगा की हम अपनी भाषा में भी अपना कार्य कर अपना और देश का विकस कर सकते हैं । हम अंग्रेजी का त्याग नहीं बल्कि हिंदी का प्रयोग की बात करते हैं । हम अंग्रेजी भाषा के ज्ञान अर्जित करने के विरोधी नहीं हैं , उसकी गुलामी करने, उस पर पूर्ण निर्भर होने का विरोध करते हैं । अत: आज जरुरत है हम भाषा के क्षेत्र में भी आत्मनिर्भर बने । और इस जन गण मन की भाषा को रानी नहीं सेविका के रुप में प्रस्तु।त करें । क्योकि राजा और रानी का युग समाप्त हो चुका है हम लोकतंत्र में विश्वास करते हैं । यहां सभी एक – दूसरे के सेवक हैं । अत: हिंदी का प्रयोग हिंदुस्तान की राष्ट्रीय एकता के लिए देश हित में राजनीति से परे किया जाना चाहिए ।
जय हिंद
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